योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी)

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  • Published on: 2025-08-16 02:51 pm

योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी)

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला महान पर्व है, जो हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं और रासलीलाओं का आयोजन होता है। भगवान कृष्ण की बाल लीला, माखन चोर, गोपाल के रूप में उनकी लीलाओं का स्मरण किया जाता है। यह पर्व प्रेम, भक्ति और सौहार्द का प्रतीक है, जो जीवन में सद्भाव और धर्म की स्थापना का संदेश देता है।

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    भारत एक बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है। सभी संस्कृति अपने-अपने रीति-रिवाजों के अनुकूल काल गणनानुसार उत्सव व त्यौहारों को मनाती है। इस बहुसांस्कृतिक वातावरण की काल-गणना के अनेक आधार हैं। काल-गणना के लिए हमारे यहाँ विभिन्न कैलेंडर का प्रयोग किया जाता है, जो सूर्य, चंद्र एवं सूर्य-चंद्र पर आधारित है। सूर्य-चंद्र पर आधारित कैलेंडर भारत का मौलिक और लोकप्रिय पंचांग माना जाता है। काल-गणना के लिए पंचांग खगोलीय स्थिति का वैज्ञानिक विवरण है। 

    हमारे पौराणिक शास्त्रों में काल-गणना को व्यापक रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें युग की अवधारणा है। युग चार बताये गए हैं। सबसे पहले सतयुग, इसके बाद त्रेता, फिर द्वापर और अंत में कलयुग है। इन चारों युगों की अवधी भी बड़ी रोचक है। कलयुग जितने वर्षों का होता है उसका दोगुना द्वापर, तीन गुणा त्रेता और चार गुणा सतयुग माना जाता है। ये चारों युग मिलकर चतुर्युग कहलाते हैं। ऐसे बहत्तर चतुर्युग होने पर एक मन्वन्तर होता है जो एक मनु के शासन का काल माना जाता है। ऐसे चौदह मनु बताये गए हैं। जब चौदह मनु का शासन समाप्त हो जायेगा तब ब्रह्मा जी का एक दिन होगा और फिर इतना ही समय का एक रात होगा। इस प्रकार से ब्रह्माजी का सौ वर्ष पूरा हो जाने पर परब्रह्म परमेश्वर का एक दिन होता है। अभी ब्रह्मा जी के एक दिन के चौदह मन्वन्तर में से सातवां मन्वन्तर चल रहा है। सातवें मन्वन्तर के बहत्तर चतुर्युग में से अट्ठाईसवां चतुर्युग चल रहा है। इस चतुर्युग का तीसरा युग द्वापर में भगवान विष्णु के आठवें अवतार लीलामय योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी के दिन हुआ माना जाता है। कृष्ण का जन्म यादव वंश में हुआ था, जो उस समय का एक प्रमुख राजवंश था।    

    भगवान् कृष्ण के जन्म के समय का सामाजिक और राजनीतिक वातावरण कलुषित था। समाज उत्पीड़न और अन्याय से भरा था। कंस नाम का एक अत्याचारी राजा मथुरा पर शासन कर रहा था, जिसने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कैद कर लिया था और देवकी के आठवें पुत्र द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी को रोकने के लिए उसके सभी बच्चों को मारने का आदेश दे दिया था। कंस के कारागार में जब कृष्ण का जन्म हुआ तो उनके डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में यशोदा और नन्द के यहाँ उनका पालन-पोषण हुआ।

    अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का उन्होंने वध कर दिया। उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर कृष्ण नंद गाँव आ गए और वहां पर उन्होंने गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला की। इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पाण्डवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से वर्णित है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है। संसार में उनका आगमन भगवान विष्णु के अवतार के रूप में माना जाता है। इस संदर्भ में एक श्लोक काफी प्रासंगिक और प्रचलित है;

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः। 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के वैष्णव परंपरा का यह एक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है जिसे सम्पूर्ण भारत में विशेषरूप से मथुरा और वृन्दावन में मनाया जाता है। मथुरा जहाँ भगवान् कृष्ण का जन्म हुआ तथा वृन्दावन जहाँ वे पले-बढे। 

    भगवान् कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा द्वापर युग में शूरसेन देश की राजधानी थी। यहाँ एक विशाल कारागार था जिसमें श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। वर्तमान में इस कृष्ण-जन्मभूमि मंदिर में एक ऊंचा चबूतरा बना हुआ है जिसके विषय में मान्यता है कि जन्म के बाद श्रीकृष्ण के प्रथम चरण यहीं स्पर्श हुए थे। श्रद्धालुओं के लिए यह एक दर्शनीय स्थल बना हुआ है।  

    वृन्दावन राधा-कृष्ण की लीलाओं की नगरी मानी जाती है। यहाँ का निधिवन रहस्यों से भरा है। भगवान् श्रीकृष्ण ने यहीं रासलीला रचाई थी। इस वन में एक मंदिर है जिसमें नित्य भगवान् की सेज सजाई जाती है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान् यहाँ नित्य राधारानी के साथ विश्राम करते हैं और सुबह दातुन करके चले जाते हैं। मंदिर के खुलने पर दातुन गीली मिलती है और सजा हुआ सेज अस्त-व्यस्त रहता है। इस वन में आज भी रात्रि में न केवल व्यक्ति, बल्कि जानवर भी नहीं ठहरता है। 

    इसके अलावा योगेश्वर श्रीकृष्ण से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों में यमुना नदी महत्त्वपूर्ण है जिसके माध्यम से वासुदेव ने श्रीकृष्ण को जन्म के पश्चात् मथुरा से गोकुल ले गए थे और इस दौरान यमुना जी ने उनका चरण स्पर्श किया था। बड़े होने पर यमुना के आसपास के क्षेत्रों में कई लीलाएं की थी। इसके अलावा गोवर्धन पर्वत से जुडी कई रहस्यमय गाथाएं आज भी सुनने को मिलती है। यहाँ कृष्ण कुंड एवं राधा कुंड की परिक्रमा का विधान है। व्रजवासियों के रक्षार्थ भगवान् श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठा लिया था। 

    मथुरा से 20 किलोमीटर की दूरी पर भांडीरवन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने राधा और कृष्ण का विवाह यहीं करवाया था। कृष्ण के ज़माने का वंशीवट आज भी यहाँ मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि जब कृष्ण जी वंशी बजाते थे तो सभी वटवृक्ष उसे ध्यान से सुनते थे। इससे 50 किलोमीटर की दूरी पर काम्यवन है जहाँ पांडवों ने आकर आश्रय लिया था, भगवान् परशुराम ने तपस्या की थी तथा श्रीकृष्ण ने व्योमासुर का वध भी यहीं पर किया था। मथुरा के बरसाने में ब्रह्मांचल पर्वत पर प्राचीन मोरकुटी है। जहाँ राधारानी एक बार मोर देखने के लिए पहुंची थी, परन्तु वहां उन्हें एक भी मोर न दिखने के कारण वह मायूस हो गयी थी। इस मायूसी को देख लीला पुरुषोत्तम कृष्ण ने मोर रूप धारण कर नृत्य करने लगे थे और राधारानी प्रसन्न  होकर उन्हें लड्डू खिलाने लगी थी। सखियाँ उन्हें पहचान गयी थी। इसलिए वे कहती हैं कि ‘राधा ने बुलायो, कान्हा मोर बन आयो’।    

    जन्माष्टमी का त्यौहार वर्षा ऋतु में पड़ता है। खेतों में फसलें लगी होती हैं और ग्रामीण समुदाय के पास खेलने के पर्याप्त अवसर होते हैं। यह उत्तर भारत के ब्रज क्षेत्र में बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान् कृष्ण के मंदिरों को सजाते हैं, उनको भोग लगाते हैं, प्रसाद व मिठाइयां बांटते हैं, रासलीला की परंपरा के साथ खुशियां मनाते हैं, एकल व सामूहिक नृत्य व नाटक का आयोजन होता है, जिसमें कृष्ण के बचपन की शरारतें, राधा-कृष्ण का प्रेम-प्रसंग, दैवीय सिद्धांतों का निरूपण, माता-पिता अपने बच्चों को कृष्ण व राधा के रूप में स्थानीय फूल व पत्तियों से सजाते हैं, भागवत पुराण व भगवद गीता के दसवें अध्याय का पाठ, कृष्ण की प्रार्थना, स्तुति, आधी रात तक उपवास आदि करते हैं। प्रसाद के रूप में फल, पान, मक्खन, कृष्ण की पसंदीदा माने जाने वाली सेवइयां, आदि होती हैं। यह त्यौहार शाम को मनाया जाता है, क्योंकि कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। ज्यादातर लोग इस दिन सख्त उपवास रखते हैं और आधी रात की पूजा के बाद ही भोजन करते हैं। जम्मू में ऐसे अवसर पर लोग अपने-अपने छतों पर पतंगे उड़ाकर खुशियां मनाते हैं।           

    यह त्यौहार व्यापक रूप से भारत के पूर्वी एवं उत्तर पूर्वी भारत में वैष्णव सम्प्रदायों के द्वारा मनाया जाता है। इसका श्रेय 15वीं व 16वीं शताब्दी में शंकरदेव व चैतन्य महाप्रभु के प्रयासों को जाता है। उन्होंने अपने दार्शनिक विचारों के साथ भगवान् कृष्ण के जन्मोत्सव को मनाने के लिए प्रदर्शन कला के नए रूपों को विकसित किया। जिसके अंतर्गत बोर्गेट, अंकिया नाट, सत्त्रिया और भक्ति योग आते हैं जो पश्चिम बंगाल और असम में लोकप्रिय है।    

    भारत का पश्चिमी क्षेत्र गुजरात, जहाँ कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था, में दही-हाँडी के साथ त्यौहार मनाने की परंपरा है। लोग द्वारकाधीश मंदिर में भजन व लोकनृत्य करते हैं। कच्छ जिले में किसान अपनी बैलगाड़ियों को सजाते हैं। सामूहिक नृत्य व गायन के साथ कृष्ण जुलुस निकालते हैं।  

    केरलवासी मलयालम कैलेंडर के अनुसार जन्माष्टमी का त्यौहार सितम्बर के महीने में मनाते हैं। तमिलनाडु में लोग अपने घर के फर्श को कोलम (चावल के घोल से तैयार सजावटी पैटर्न) से सजाते हैं। इस उपलक्ष्य में गीत गोविन्दम और भक्ति गीत गाते हैं, कृष्ण की स्तुति करते हैं। घर के मुख्य दरवाजे से पूजा कक्ष तक कृष्ण के पैरों के निशान खींचते हैं। यह निशान घर में कृष्ण के आगमन को दर्शाता है। इस समय भगवद गीता का पाठ भी किया जाता है। 

    कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार न केवल भारत में, बल्कि विश्व के कई देशों में मनाया जाता है। नेपाल में अस्सी प्रतिशत हिन्दू आबादी है जो अपने रीति-रिवाजों के अनुसार जन्मोत्सव मनाते हैं। बांग्लादेश में जन्माष्टमी के दिन राष्ट्रीय अवकाश घोषित है। वहां के ढाकेश्वरी मंदिर से प्रायः जुलुस निकलती है। फिजी में एक चौथाई हिन्दू आबादी है। ये वे आबादी है जो किसी समय भारतीय गिरमिटिया मजदूर बनकर वहां पहुंचे थे जो अधिकांशतः उत्तर प्रदेश, बिहार एवं दक्षिण भारत से थे। फिजी का जन्माष्टमी आठ दिनों तक अर्थात, कृष्ण के जन्म के दिन तक चलता है। इन आठ दिनों में भक्त मंडली बनाकर भगवत पुराण का पाठ करते हैं और कृष्ण भक्ति के गीत गाते हैं और प्रसाद वितरित करते हैं।    

    इसके अलावा जन्माष्टमी का त्यौहार कैरिबियन में गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, जमैका और पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश, सूरीनाम के पूर्व डच उपनिवेश में हिन्दुओं द्वारा व्यापक रूप से मनाया जाता है। ये वे प्रवासी हिन्दू हैं जो भारत के विभिन्न राज्यों से गिरमिटिया के रूप में वहां बसे हैं।   

    इसप्रकार, कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला महान पर्व है, जो हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं और रासलीलाओं का आयोजन होता है। भगवान कृष्ण की बाललीला, माखन चोर, गोपाल के रूप में उनकी लीलाओं का स्मरण किया जाता है। यह पर्व प्रेम, भक्ति और सौहार्द का प्रतीक है, जो जीवन में सद्भाव और धर्म की स्थापना का संदेश देता है।

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