Indic Varta

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दर्जनों महान विचारकों ने पौधों की बुद्धि केसिद्धांत दिए और उनकादस्तावेजीकरण किया है। फिर भी यह विश्वास कि पौधे अकशेरूकीय की तुलना में कम बुद्धिमान और विकसित प्राणी हैं, और यह कि “विकासवादी पैमाने” पर वे बमुश्किल निर्जीव वस्तुओं से ऊपर हैं, यह सोच हर जगह मानव संस्कृतियों में बनी रहती हैं और हमारे दैनिक व्यवहार में प्रकट होती है।

अब्राहमिक दृष्टि में वनस्पति जगत

शुरुआत में, सब कुछ हरा-भराथा: पौधों की कोशिकायें ही सर्वत्र व्याप्त थी। इसके बाद सृष्टा ने जानवरों को बनाया, उन सभी के बाद सबसे महान सर्जन मनुष्यके साथ उसकासृजन काकार्य समाप्त हुआ । बाइबल में, कई अन्य ब्रह्मांडों की तरह, मनुष्य दैवीय कार्य का सर्वोच्च फल है, उसे चुना गया है। वह सृष्टि के अंत के निकट प्रकट होता है, जब सब कुछ उसका इंतजार कर रहे होते है: “अशरफुल मखलूक(सर्वश्रेष्ठ प्राणी)” के अधीन होने और शासित होने के लिए।

In this book, a leading plant scientist offers a new understanding of the botanical world and a passionate argument for intelligent plant life. Are plants intelligent? Can they solve problems, communicate, and navigate their surroundings? For centuries, philosophers and scientists have argued that plants are unthinking and inert, yet discoveries over the past fifty years have challenged this idea, shedding new light on the complex interior lives of plants. In Brilliant Green,

बाइबिल के अनुसार , दैवीय कार्य सात दिनों की समय सीमा में पूरा होता है। तीसरे दिन पौधे बनते हैं, जबकि सभी जीवित प्राणियों में सबसे महत्वपूर्ण छठे दिन इस दुनिया में आता है। इस क्रम से आज के वैज्ञानिक निष्कर्षों का पूर्वअनुमान लगता है, जिसके अनुसार प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम जीवित कोशिकाएँ पहली बार साढ़े तीन अरब साल पहले ग्रह पर दिखाई दीं, जबकि पहला होमो सेपियन्स, तथाकथित आधुनिक मनुष्य, केवल 200,000 साल पहले दिखाई दिया। (विकासवादी काल ढाचे की समय सीमा में मात्रकुछ सेकंड पहले)। लेकिन अंतिम होने के वावजूद वह स्वयं को विशेषाधिकार महसूस करने केलोभ से रोक नहीं पाया  है, यद्यपि विकासवाद के वर्तमान ज्ञान ने “ब्रह्मांड के स्वामी” की हमारी भूमिका को काफी कम कर दिया है। अपनी पददलित  स्थिति को “नवागंतुक”  के रूप में परिवर्तित करना भी अन्य प्रजातियों पर सर्वोच्चता की कोई प्राथमिक गारंटी नहीं लाता है, इसके बावजूद क्या हमारी सांस्कृतिक कंडीशनिंग(प्रानुकूलन)हमें इसअपने पूर्व ज्ञान परअविश्वास करने के लिए विवश कर सकेगी।

यह विचार कि पौधों में “मस्तिष्क” या “आत्मा” होती है। और यह कि सबसे सरल पादप जीव भी बाहरी अनुभूतियो को महसूस कर सकते हैं और प्रतिक्रिया कर सकते हैं। कई दार्शनिकों और वैज्ञानिकों द्वारा सदियों से प्रस्तावित है-डेमोक्रिटस से प्लेटो तक, फेचनर से डार्विन तक । सर्वकालिक महान चिंतको में से कुछ नेपौधों में पाई जाने वाली बुद्धि को खोजा , कुछनेउनके महसूस करने की क्षमता के गुण को ,कुछअन्य ने उनकी कल्पना ऐसे इंसानों के रूप में की जिनका सर जमीन  में धसा हुआ है: संवेदनशील जीवित प्राणी, बुद्धिमत्तासे संपन्न , सिवाय उनके द्वारा पैदाकी गयी विषम स्थिति को छोड़कर… ।

दर्जनों महान विचारकों ने पौधों की बुद्धि केसिद्धांत दिए और उनकादस्तावेजीकरण किया है। फिर भी यह विश्वास कि पौधे अकशेरूकीय की तुलना में कम बुद्धिमान और विकसित प्राणी हैं, और यह कि “विकासवादी पैमाने” पर (एक अवधारणा वास्तव में बिना आधार के लेकिन अभी भी हमारी मानसिकता में तय है) वे बमुश्किल निर्जीव वस्तुओं से ऊपर हैं, यह सोच हर जगह मानव संस्कृतियों में बनी रहती हैं और हमारे दैनिक व्यवहार में प्रकट होती है। प्रयोगों और वैज्ञानिक खोजों के आधार पर पादप बुद्धि को मान्यता देने के समर्थन में चाहे कितनी भी आवाजें उठें, इस परिकल्पना का असीम रूप से विरोध है ।  मौन सहमति सेधर्म, साहित्य, दर्शन और यहां तक ​​कि आधुनिक विज्ञान पाश्चात्य संस्कृति में इस विचार को प्रख्यापित करता हैं कि पौधों की तुलना में अन्य प्राणी  जीवन के स्तर  परअधिक उन्नत हैं (फिलहाल “बुद्धिमत्ता” की बात नहीं करते हैं)

पौधे और महान एकेश्वरवादी संप्रदाय”

“और सब प्राणियोंमें से दो एक जाति के दो पशु अपके पास जीवित रखने के लिये नौका में ले आना; वे नर और मादा हों। पृय्वी के रेंगनेवाले जन्तु अपनी जाति के अनुसार तेरे पास आएंगे, कि तू उन्हें जीवित रखें।” इन शब्दों के साथ, पुराने नियम के अनुसार, परमेश्वर ने नूह को बताया कि सार्वभौमिक जलप्रलय से क्या बचाना है ताकि हमारे ग्रह पर जीवन जारी रहे। जलप्रलय से पहले, परमेश्वर के निर्देशों का पालन करते हुए, नूह ने पक्षियों, जानवरों, और हर प्राणी को नौका  पर लाद दिया: “हलाल” और”हराम ” जीव, जोड़े में, हर प्रजाति के प्रजनन को सुनिश्चित करने के लिए। और पौधे? उनके बारे में एक शब्द नहीं।क्या पवित्र शास्त्र में पौधे की दुनिया को जानवरों की दुनिया के बराबर माना जाता है,नहीं!इसे बिल्कुल भी नहीं माना जाता है। इसे उसके भाग्य पर छोड़ दिया गया है, शायद या तो बाढ़ से नष्ट हो जाएगा या अन्य निर्जीव चीजों के साथ जीवित रहने के लिए। पौधे इतने महत्वहीन थे कि उनकी देखभाल करने का कोई कारण नहीं था।और फिर भी इस मार्ग में अंतर्विरोध जल्द ही स्पष्ट हो जाते हैं। पहला स्पष्ट हो जाता है क्योंकि कथा जारी है। नौका के धीमी गति से आने के बाद, जब कई दिनों तक बारिश बंद हो जाती है, तो नूह दुनिया की खबर वापस लाने के लिए एक कबूतर भेजता है। क्या कहीं सूखी जमीन है? क्या आस-पास पानी के ऊपर स्थान हैं? क्या वे रहने योग्य हैं? कबूतर अपनी चोंच में जैतून की शाखा के साथ लौटता है: एक संकेत है कि कुछ भूमि फिर से उभर आई है और उन पर जीवन फिर से संभव है। इसलिए नूह जानता है (भले ही वह यह न कहे) कि पौधों के बिना पृथ्वी पर जीवन नहीं हो सकता है

Alessandra Viola is a scientific journalist, writer of documentaries, and a television scriptwriter. In 2011, she directed the Genoa Science Festival. 

कबूतर की खबर से जल्द ही पुष्टि हो जाती है, और थोड़ी ही देर में नूह की नौका  अरारत के पर्वत पर आराम करने के लिए आ जाती  है। महान पितामह नाव से उतारते  हैं, जानवरों को विदा करते हैं, और फिर परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। उनके कर्तव्य पूरे हुए । और नूह आगे क्या करता है? वह एक पौधेकी डाली लगाता है। लेकिन मूल लता कहाँ से आती है, अगर कहानी में कहीं और इसका उल्लेख नहीं किया गया है? नूह उसे जल प्रलय से पहले अपने साथ ले आया था,वहइसकी उपयोगिता से अवगत था, हालांकि यह नहीं है कि यह जीवित एक जीवित प्राणी था इस तरह, लगभग पाठक को इसे महसूस किए बिना, यह विचार कि पौधे जीवित प्राणी नहीं हैं, पवित्र ग्रंथ उत्पत्ति(जेनेसिस) में कहानी के माध्यम से आता है, दो पौधे, जैतून और अंगूर की बेल, पुनर्जन्म और जीवन के मूल्य से जुड़ी हैं, हालांकि यहाँ सामान्य रूप से पौधे की दुनिया की महत्वपूर्ण गुणवत्ता अपरिचित हो जाती है

इब्राहीम के सभी तीन धर्म यह मानने में असफल रहे हैं कि पौधे जीवित प्राणी हैं, वास्तव में उन्हें निर्जीव वस्तुओं के साथ समूहीकृत किया गया है। इस्लामी कला, उदाहरण के लिए, अल्लाह या किसी अन्य जीवित प्राणी का प्रतिनिधित्व करने के निषेध का सम्मान करते हुए, पौधों और फूलों के प्रतिनिधित्व के लिए पूरी लगन से समर्पित है, इतना कि पुष्प शैली प्रतीकात्मक है। इसे एकमुश्त बताए बिना, यह इस विश्वास को दर्शाता है कि पौधे जीवित प्राणी नहीं हैं अन्यथा उनका प्रतिनिधित्व करने से मना किया जाएगा! क्या कुरान वास्तव में जानवरों का प्रतिनिधित्व करने पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है; हदीस के माध्यम से निषेध प्रसारित किया जाता है, पैगंबर मोहम्मद की बातें जो इस्लामी कानून की व्याख्या के लिए आधार बनाती हैं, इस तथ्य के आधार पर कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है और सब कुछ उसी से आता है, और सब कुछ वह है- जो स्पष्ट रूप से पौधों का कोई जिक्र नहीं है।

Stefano Mancuso is the Director of the International Laboratory of Plant Neurobiology (LINV) in Florence, Italy, a founder of the International Society for Plant Signaling and Behavior, and a professor at the University of Florence. His books and papers have been published in numerous international magazines and journals, and La Repubblica newspaper has listed him among the twenty people who will change our lives.

वह मनुष्यों और पौधों के बीच संबंध पूरी तरह से उभयभावी है। उदाहरण के लिए, वही यहूदी धर्म जो पुराने नियम पर आधारित है, पेड़ों के अनावश्यक विनाश को रोकता है और पेड़ों के नए साल (तू बिश्वत) का जश्न मनाता है। द्विपक्षीयता इस तथ्य से आती है कि एक तरफ हम इंसानों को अच्छी तरह से पता है कि हम पौधों के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकते हैं, और दूसरी तरफ हम इस ग्रह पर उनकी भूमिका को पहचानने के इच्छुक नहीं हैं।

यह सच है कि सभी पंथो का पादप जगत से एक जैसा संबंध नहीं है। मूल अमेरिकी और अन्य स्वदेशी लोग इसकी निर्विवाद पवित्रता को पहचानते हैं। यदि कुछ सम्प्रदायों ने पौधों (या बल्कि, उनके कुछ हिस्सों) को पवित्र कर दिया है, तो अन्य लोग उनसे नफरत करने या उन्हें राक्षस घोषित करने पर तुल गए , उदाहरण के लिए, जिन महिलाओ पर चुड़ैलों होने के लिएमुकद्दमा चलाया गया उनके साथ  जादू-टोनाजांच  के दौरानके लिए, -लहसुन, अजमोद, और सौंफ-परपरीक्षण हुए.आज भी, मनोदैहिक प्रभाव वाले पौधे विशेष उपचार प्राप्त करते हैं: कुछ पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं (आप एक पौधे पर कैसे प्रतिबंध लगाते हैं? क्या आप किसी जानवर पर प्रतिबंध लगा सकते हैं?), अन्य को विनियमित किया जाता है, फिर भी अन्य को पवित्र माना जाता है और आदिवासी समारोहों में ओझाओ द्वारा कई पौधों का  उपयोग किया जाता है।

Source:

ब्रिलियंटग्रीन ,स्तेफानो और अलेस्संद्र ,अंग्रेजी अनुवाद-जॉन बेंहम,हिन्दी भावानुवाद-डॉ.विकास सिंह


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