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Christian Missionaries

ईसाई मिशनरी और जाति-संस्था

सन् १८५७ के पूर्व का विशाल मिशनरी साहित्य एवं पत्र-व्यवहार धर्मांतरण के मार्ग में दो ही बाधाओं का उल्लेख करता है। एक, जाति-संस्था के कड़े बंधन, जिसके कारण धर्मांतरित व्यक्ति जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता था। दूसरा कारण था पूरे समाज में ब्राह्मणों के प्रति अपार श्रद्धा का भाव। ब्राह्मणों की नैतिक-बौद्धिक श्रेष्ठता को चुनौती दे पाने में मिशनरी स्वयं को असमर्थ पा रहे थे। अपने इस अनुभव के कारण ईसाई मिशनरियों ने जाति-संस्था को ब्राह्मणवाद की रचना मानकर उसे तोड़ना ही ईसाई धर्म का मुख्य लक्ष्य घोषित कर दिया।

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