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भारतीय ज्ञान परम्परा — 2

About This Course

यह कोर्स भारतीय ज्ञान परंपरा, उसके वैशिष्ट्य, उसके विद्या स्थान, उसके ग्रन्थ और उनके वर्गीकरण के बारे में है| भारत की पहचान सदैव एक ज्ञान परंपरा, ज्ञान संस्कृति के बारे में रही है| कई प्राचीन सभ्यताएं ज्ञान के क्षेत्र में भारत का ऋण मानती रही हैं| केवल प्राचीन समय में ही नहीं बल्कि सदैव ही भारत ने ज्ञान का निर्यात दूसरी सभ्यताओं और संस्कृतियों को किया है| ऐसा क्यों है? भारत एक ज्ञान परंपरा के रूप में कैसे स्थापित हुआ? ऐसे क्या मापदंड हैं जिनके कारण भारत एक ज्ञान परंपरा माना जाता रहा है? और इस ज्ञान परंपरा का वैशिष्ट्य और लक्ष्य क्या है, यह इस कोर्स की विषय वस्तु है|

छः पाठों में विभक्त यह कोर्स विद्यार्थी को भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय मानस की कार्य पद्धति, भारतीय ज्ञान परंपरा का वैशिष्ट्य, भारतीय वाङ्मय का वर्गीकरण, काव्य शास्त्र तथा विद्या स्थानों के बारे में बतायेगा|

महत्वपूर्ण सूचना: यह एक स्व अभिरुचि पाठ्यक्रम है। जहां, आप अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी समय, कहीं से भी वीडियोज के माध्यम से सीख सकते हैं। इसमें प्रशिक्षक द्वारा कोई नियमित लाइव सत्र नहीं हो रहा होगा कि आपको उसी आवंटित समय और तिथि में कक्षा करना अनिवार्य हो , इससे आपकी किसी व्यस्तता के कारण कक्षा के छूटने का भय भी दूर होगा । फलतः आप अपनी सुविधा अनुसार जब चाहे सीख सकते हैं।

What You’ll Learn

  • आप इस कोर्स में यह सीखेंगे कि भारतीय ज्ञान परंपरा क्या है और भारत में ज्ञान की क्या अवधारणा है? आप यह जानेंगे कि भारत में ‘परंपरा’ शब्द का क्या अर्थ है और ‘भारत’ शब्द और अवधारणा का क्या अर्थ है?

  • आप सीखेंगे कि भाषा की भारतीय ज्ञान परंपरा में क्या महत्ता है? आप जानेंगे दर्शन की केंद्रीय भूमिका के बारे में; ज्ञान की अपौरुषेयता; लोक और शास्त्र की अनुपूरकता जैसे सिद्धांतों के बारे में और ज्ञान के उद्देश्य के बारे में|

  • आप जानेंगे कि कैसे भारत एक पेगन संस्कृति है और भारतीय विचार पद्धति के रूपक क्या हैं| आप भारतीय वाङ्मय के वर्गीकरण के बारे में विस्तार से सीखेंगे कि प्रमाणिकता की दृष्टि से, शास्त्रों की दृष्टि से और कई दृष्टियों से यह वर्गीकरण क्या है| आप सीखेंगे कि कैसे और क्यों भारत में आचार्यों और ग्रंथों की अटूट श्रंखला रही है; काव्य का प्रमुख उद्देश्य क्या है और काव्य परंपरा आखिर है क्या|

  • आप सीखेंगे शिष्ट और ब्राह्मण के सिद्धांत के बारे में| शास्त्र, काव्य, वेद, वेदांगों, विद्या स्थानों और ६४ कलाओं के बारे में| और आप सीखेंगे कि कैसे भारतीय ज्ञान परंपरा अद्वैत परक है|

Course Curriculum

अध्याय १ - तंत्र
1.1 – आगम शास्त्र और परम्पराएँ 00:00:00
1.2 – ग्रन्थ और विद्याएँ 00:00:00
1.3 – तंत्र का अर्थ 00:00:00
1.4 – ज्ञान धाराओं का समन्वय 00:00:00
1.5 – वाद और चित्तशक्ति 00:00:00
1.6 – तंत्र आत्म-स्वरुप के अनुसन्धान की प्रक्रिया 00:00:00
Quiz 2 – Bhāratīya Jñāna Paramparā — 2 Unlimited
अध्याय २ - भारतीय साहित्य शास्त्र
2.1 – काव्य और काव्य शास्त्र 00:00:00
2.2 – साहित्य में ज्ञान की समग्रता 00:00:00
2.3 – भाषा केन्द्रीयता 00:00:00
2.4 – साहित्य के लक्ष्य 00:00:00
2.5 – लोक और साहित्य का समन्वय 00:00:00
2.6 – साहित्य में ज्ञान केन्द्रीयता 00:00:00
Quiz 2 – Bhāratīya Jñāna Paramparā — 2 Unlimited
अध्याय ३ - व्याकरण शास्त्र
3.1 – The Great Linguistic Turn 00:00:00
3.2 – भाषा और संगीत का मूल संबंध 00:00:00
3.3 – प्रथम काल: पाणिनि से पहले (७वी शताब्दी ई.पू. से पहले) 00:00:00
3.4 – द्वितीय काल: त्रिमुनि काल (७वी शताब्दी ईसवी पूर्व से प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व तक) 00:00:00
3.5 – तृतीय काल: पतंजलि से भोज तक (दूसरी शताब्दी ईसवी पूर्व से १२वी शताब्दी तक) 00:00:00
3.6 – चतुर्थ काल: १२वी शताब्दी से १९वी शताब्दी तक 00:00:00
3.7 – व्याकरण शास्त्र के लक्षण 00:00:00
Quiz 3 – Bhāratīya Jñāna Paramparā — 2 Unlimited
अध्याय ४ - भारतीय ज्ञान परंपरा का वैशिष्ट्य दर्शन के सन्दर्भ में
4.1 – सनातन गंगा प्रवाह 00:00:00
4.2 – जिज्ञासा परक दर्शन 00:00:00
4.3 – निरंतरता और समन्वयता 00:00:00
4.4 – भाषा केन्द्रीयता 00:00:00
4.5 – वाद परंपरा 00:00:00
4.6 – अद्वैत परक परंपरा 00:00:00
Quiz 4 – Bhāratīya Jñāna Paramparā — 2 Unlimited
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