तंत्र ४ – तंत्र के बारे में भ्रांतियाँ
पश्चिम में ही नहीं, भारत में भी, तंत्र के बारे में बहुत सी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं| उनमें से सबसे बड़ी यह है कि इसमें कई प्रकार की दुष क्रियाएं होती है और इसका सम्बन्ध केवल उन्मुक्त काम से ही है| रजनीश मिश्र हमें बताते हैं कि तंत्र वास्तव में है क्या और इसका सम्बन्ध योग ध्यान आदि से क्या है| वे हमें यह भी बताते है कि तंत्र के सम्बन्ध में प्रमुख भ्रांतियाँ क्या क्या है और ऐसी भ्रांतियाँ क्यों फैलीं
Read Moreतंत्र ३ – आगम : शिव पार्वती का संवाद
आगम उपदिष्ट हैं – अर्थात शिव और पार्वती के संवाद के रूप में हैं| काव्य के ग्रंथों में आचार्य अभिनव गुप्त ने जब सहृदय की परिभाषा दी अपनी टीका में, तो इसी को हृदय संवाद कहा| अर्थात शिव और पार्वती का संवाद कोई दो व्यक्तियों के बीच का संवाद नहीं है| यह संवाद है हृदय का| हृदय का ही एक पक्ष प्रश्न करता है| दूसरा उसको समझता है, उत्तर देता है| इस तरह का एक एकत्व का संवाद है यह|
Read Moreतंत्र २ – तंत्र की अवधारणा
इस लेख में डॉ. रजनीश मिश्र ने तंत्र की अवधारणा को समझाने का प्रयत्न किया है| वे बताते हैं कि तंत्र एक साधना पद्धति है और ज्ञान के उपार्जन की एक पद्धति है| तंत्र और आगम कैसे सभी प्रान्तों और काल खण्डों में प्रचलित रहे हैं यह भी हमें इस लेख से पता चलता है|
Read Moreतंत्र १ : भारत – एक आध्यात्मिक संस्कृति
इस लेख माला के पहले लेख में डॉ. रजनीश मिश्र तुलना करते हैं तीन महान संस्कृतियों की और यह बताते हैं कि भारतीय संस्कृति की विशेषता क्या है और क्यों उसे एक ज्ञान संस्कृति के रूप में ही सदैव देखा जाता रहा है। इसके पश्चात वो आगम और निगम ग्रंथों की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए परा और अपरा विद्याओं के बारे में बताते हैं। यह लेख माला तंत्र पर है और इस लेख में एक पृष्ठभूमि देकर लेखक आगे तंत्र के बारे में विस्तार करेंगे।
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