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All posts by Dr. Amit Kumar Dubey

भारतीय मूल चिन्तन में राजनीति तथा दंडनीति

वर्तमान में प्राचीन भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के बारे में अनेक भ्रांतियां हैंI इसमें सबसे बड़ी भ्रान्ति हिन्दुओं की दंड व्यवस्था को लेकर हैI ऐसी एक धारणा बना दी गयी है कि हिन्दू राजनीति और कूटनीति से अनभिज्ञ थे तथा अपने राष्ट्र के रक्षा की चिंता नहीं करते थेI वस्तुतः मैं अपनेइस लेख में विशुद्ध भारतीय राजनीति के ग्रंथों में वर्णित राजनीति के बारे में चर्चा करूँगा

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आचार्य वाचस्पतिमिश्र: व्यक्तित्व एवं कृतित्व

आज भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व में प्रायः जो किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति उत्पन्न हुई है वह आचार्य वाचस्पति मिश्र जैसे पूर्वजों द्वारा स्थापित आदर्शों की अवहेलना का ही दुःखद परिणाम हैI आज की पीढ़ी अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति एवं अपने परिवार से भी इतनी दूर होती जा रही है कि उसे अपना हित, इष्ट या मुख्य प्रयोजन भी यथार्थ रूप में न कोई समझ पा रहा है न ही कोई कोई समझा पाने की शसक्त भूमिका में स्वयं को समर्थ पा रहा हैI

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भारतीय अखंडता के सूत्रधार आचार्य शंकर

आदि शंकर के अनुसार धर्म सत्य तथा विजय की शक्ति हैI धर्म सुख का मूल है तथा धर्म के लोप से ही अधर्म का जन्म होता हैI क्योंकि दुःख का मूल कारन धर्म-विहीनता हैI संसार की सभी प्राचीन संस्कृतियाँ सुख की प्राप्ति हेतु स्वयम को धर्म से सम्बद्ध एवं समन्वित रखने का प्रयास करती हैंI

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भारतीय परम्परा की सनातन दृष्टि

संस्कृति मूल्य-दृष्टि और मूल्य-निष्ठा होने केसाथ-साथ मूल्यों के अर्जित करने की प्रक्रिया भी हैI यह भारतीय परम्परा की मूल-दृष्टि हैI

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आधुनिक मन के रूपांतरण में ध्यान की भूमिका

राईट कह रहे हैं कि बुद्धिज़्म में ध्यानियों की गहरी अनुभूतियाँ तथा हिन्दुओं के अद्वैत वेदांत के ध्यानियों की गहरी अनुभूतियाँ मूलतः एक ही हैंI इसमें अंतर यह हो सकता है कि एक में आत्म-बंधन का विलय कुछ नहीं में हो रहा है, दूसरे में आत्म-बंधन का विलय दूसरी चीजों के साथ एकरूपता में हो रहा हैI

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