भारतीय मूल चिन्तन में राजनीति तथा दंडनीति
वर्तमान में प्राचीन भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के बारे में अनेक भ्रांतियां हैंI इसमें सबसे बड़ी भ्रान्ति हिन्दुओं की दंड व्यवस्था को लेकर हैI ऐसी एक धारणा बना दी गयी है कि हिन्दू राजनीति और कूटनीति से अनभिज्ञ थे तथा अपने राष्ट्र के रक्षा की चिंता नहीं करते थेI वस्तुतः मैं अपनेइस लेख में विशुद्ध भारतीय राजनीति के ग्रंथों में वर्णित राजनीति के बारे में चर्चा करूँगा
Read Moreआचार्य वाचस्पतिमिश्र: व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आज भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व में प्रायः जो किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति उत्पन्न हुई है वह आचार्य वाचस्पति मिश्र जैसे पूर्वजों द्वारा स्थापित आदर्शों की अवहेलना का ही दुःखद परिणाम हैI आज की पीढ़ी अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति एवं अपने परिवार से भी इतनी दूर होती जा रही है कि उसे अपना हित, इष्ट या मुख्य प्रयोजन भी यथार्थ रूप में न कोई समझ पा रहा है न ही कोई कोई समझा पाने की शसक्त भूमिका में स्वयं को समर्थ पा रहा हैI
Read Moreभारतीय अखंडता के सूत्रधार आचार्य शंकर
आदि शंकर के अनुसार धर्म सत्य तथा विजय की शक्ति हैI धर्म सुख का मूल है तथा धर्म के लोप से ही अधर्म का जन्म होता हैI क्योंकि दुःख का मूल कारन धर्म-विहीनता हैI संसार की सभी प्राचीन संस्कृतियाँ सुख की प्राप्ति हेतु स्वयम को धर्म से सम्बद्ध एवं समन्वित रखने का प्रयास करती हैंI
Read Moreभारतीय परम्परा की सनातन दृष्टि
संस्कृति मूल्य-दृष्टि और मूल्य-निष्ठा होने केसाथ-साथ मूल्यों के अर्जित करने की प्रक्रिया भी हैI यह भारतीय परम्परा की मूल-दृष्टि हैI
Read Moreआधुनिक मन के रूपांतरण में ध्यान की भूमिका
राईट कह रहे हैं कि बुद्धिज़्म में ध्यानियों की गहरी अनुभूतियाँ तथा हिन्दुओं के अद्वैत वेदांत के ध्यानियों की गहरी अनुभूतियाँ मूलतः एक ही हैंI इसमें अंतर यह हो सकता है कि एक में आत्म-बंधन का विलय कुछ नहीं में हो रहा है, दूसरे में आत्म-बंधन का विलय दूसरी चीजों के साथ एकरूपता में हो रहा हैI
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