Home

Login

Login with Google

‘‘माया एक अद्भुत पहेली‘‘ 

May 17, 2022 Authored by: Dr. Vikas Singh

तत्वमीमांसीय अवधारणायें दार्शनिक उपकरण के रूप में इसलिए प्रयुक्त की जाती है ताकि वे पूर्वस्थित अवधारणाओं के मध्य विरोधों का समाहार कर सकें या अनावश्यक तत्वमीमांसीय अवधारणाओं का स्थान लें सके। माया की अवधारण एक ऐसी ही तत्वमीमांसीय अवधारणा के रूप में प्रकट हुयी जिसने श्रुति में उपस्थित दो विरोधी धारणाओं, ब्रह्म के एकत्व एवं जगत के नानात्व को एक साथ साध लिया। ऋगवेद में इन्द्र के रूप परिवर्तन के अवधारणा ही सम्भवतः आचार्य शंकर के माया की अवधारणा का आधार बनी। इन्द्र के रूप परिवर्तन ने चार सम्भावनाऐं विद्यमान है।

               या तो रूप परिवर्तन सत्य है, या असत्य है, या दोनों है, या दोनों नहीं है। इसी प्रकार की अवधारणा स्पष्ट रूप में शंकर की माया की अवधारणा में मिलती है। आचार्य शंकर माया को न तो सत् मानते है, न असत् मानते है बल्कि अनिर्वचनीय कहते है। आचार्य शंकर के वेदान्त में ‘ माया ’ महत्वपूर्ण स्थान रखती है क्यांेकि इसके बिना अद्वैत की पुष्टि असंभव है। माया का गणितीय प्रदर्शन कामकोठिपीठाधीश्वर शंकराचार्य ने इस प्रकार किया है-

चूंकि अनन्त गुणा शून्य बराबर  कोई संख्या

ठीक इसी प्रकार ब्रह्म गुणा माया बराबर  सीमित प्रपंच

शारीरिक भाष्य के उपोदधात में आचार्य अध्यास का कारण अविद्या बतातें है क्योंकि उन्होंने माया और अविद्या का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है यद्यपि बाद के वेदान्तियों ने इसमें भेद किया है।

               शंकराचार्य की प्रमुख विशेषता उपनिषदों में वर्णित विछिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों को एक सूत्र में अनुस्यूत करके एक क्रमबद्ध दर्शन का रूप देना है, उपनिषदों जहां एक ओर ब्रह्य से जगत की उत्पत्ति की चर्चा है वहीं दूसरी ओर ब्रह्य को ही एक मात्र सत् बताया है।

ब्रह्य और असत् जगत को मिलाने वाली कड़ी को उन्होंने माया कहा है, जो न सत् है न असत् है। नाना रूपात्मक जगत की उत्पत्ति का कारण केवल माया है। माया ब्रह्य की शक्ति है। वह संसार की कारण शक्ति है। नाम रूपात्मक जगत इसी माया में सूक्ष्म रूप से स्थिर रहता है, इसलिए यह अव्यक्त कही जाती है।

               माया की उपाधि से युक्त होने के कारण ब्रह्य निर्गुण नहीं रह जाता, व सगुण हो जाता है। उसकी संज्ञा ईश्वर की हो जाती है। यही ईश्वर संसार का कर्ता है। ईश्वर स्वतः निष्क्रिय है पर माया के संपर्क से वह सक्रिय हो जाता है।

परमात्मनः (ईश्वरस्य) स्परूपाश्रयम औदासीन्यम।

मायाव्यपाश्रयंच प्रवर्तकम्।। (शंकर भाष्य)

ईश्वर ही इस जगत् का अपने शुद्ध चैैतन्य रूप से निमित्त कारण है पर माया की उपाधि से युक्त चैतन्य से उपादान कारण है। जगत ब्रह्य का ‘ विवर्त ’ है पर माया का ‘ परिणाम ’ जगत जगत रूपी कार्याे की कारण शक्ति का सामूहिक रूप माया है। इस माया का आश्रय ब्रह्य है जो माया युक्त होने पर ईश्वर हो जाता है।

अव्यक्तं सर्वकार्य कारण शक्तिसमाहाररूपं परमात्र्मान ओतप्रोतभावेन समाश्रितम्। (शा0भाष्य)

ईश्वर सृष्टि के लिए पूर्णतः माया पर निर्भर है और सृष्टि के ऊपर ही ईश्वर का ईश्वरत्व और सर्वज्ञत्व आदि आधारित है, अन्यथा वह किसका शासन करेगा और किसे जानेगा ! यही माया नाम रूपों का बीज है। एक ही ब्रह्य माया के कारण अनेक रूपों में आभासित होता है।

एक एव परमेश्वरः कूटस्थनित्यो नामधातुः अविद्यया मायाविवदनेकधा विभाध्यते। (शा0भाष्य)

आचार्य शंकर एक मात्र ब्रह्य की सत्ता को ही स्वीकार करते है, ऐसे में जगत उनके लिए पहेली बन जाता है जिसे हल करने के लिए ‘ माया ’ महत्वपूर्ण हो जाती है, सारे नानात्व एवं जागतिक प्रपंच की व्याख्या वे ‘ माया’ के सिद्धान्त के द्वारा करते है। इसके लिए सत्ता के तीन रूपों की चर्चा करते है, जिसे उन्होंने प्र्रतिभाषिक, व्यवहारिक एवं परमार्थिक कहा है।

               इन सत्ताओं को भली प्रकार से स्पष्ट करने के लिए उन्होंने रज्जु एवं सर्प का सामान्य दृष्टांत दिया है। यहां अंधेरे में रज्जु को देखने पर सर्प की प्रतीति होना में रज्जु की ही वास्तविक सत्ता है जबकि सर्प भासमान होता है। ठीक इसी प्रकार ब्रह्य की ही एक मात्र सत्ता है जबकि अज्ञान के कारण जगत की प्रतीति होती है।

               कई विद्वान यह कहते है कि आचार्य शंकर जगत के अस्तित्व को नहीं मानते किन्तु आचार्य इस जगत के अस्तित्व को नकारते नहीं है बल्कि इसे वे व्यवहारिक सत्ता की कोटि में रखते है क्योंकि जगत को नकारने का अर्थ होता कि उनका सारा उपदेश, भाष्य यहां तक की उनका सिद्धान्त भी व्यर्थ होता। जैसे रात में सोते वक्त देखा गया स्वप्न उस काल के लिए सत्य है किन्तु जागने की स्थिति में उसका अस्तित्व नहीं होता। इसी प्रकार जगत भी अस्तित्व रखता है किन्तु परमार्थिक दृष्टि से नहीं।


Center for Indic Studies is now on Telegram. For regular updates on Indic Varta, Indic Talks and Indic Courses at CIS, please subscribe to our telegram channel !


Designed & Managed by Virtual Pebbles
X